** बधाई हो……बधाई हो **
Written by Rakesh kumar Berwal (Lect.)
राजस्थान सरकार को बहुत बहुत बधाई हो साथ ही कर्मचारियों को भी बहुत बहुत बधाई हो आज का दिन ओहो ! माफ करना कल की रात बहुत खास थी, एतिहासिक थी। एक ग्यापन मात्र से सरकार को तुंरत ऐक्शन मोड मे देखा गया शायद इतनी तत्परता आज तक नही देखी होगी यहां तक की न्यायालय के आदेशो के बाद भी ? जिन कर्मचारियों और अधिकारियों पर फाइल रोकने के आरोप लगते वो भी कल रात गलत साबित हुऐ हाथोंहाथ फाइल भी पहुंची और निर्णय भी हुआ पुनः बधाई हो।
कितनी बार कर्मचारी सड़कों पर धक्के खाते देखे गये है। सालो-साल जो फाइलें एक कमरे से दूसरे कमरे तक नही जा पाती वो आज बुलेट ट्रेन पर सवार दिखी। इतनी गति क्यों ओर वो भी रात के अंधेरे मे प्रश्न तो खड़े होंगे ही ? क्या एक पल भी सोचा कितने बच्चे, अभिभावक और शिक्षक परेशान होंगे। क्या राजस्थान मे दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रो मे संचार क्रांति पहूंच गई की रातो रात सूचना पहुंच जाये ? आप ये कैसे भूल गये कि दूर दराज की ढाणियों से जो बच्चे आते है उनको परेशानी होगी ? ऐसे भी बच्चे है जिनके मां-बाप बच्चों को स्कूल भेजकर निश्चित होकर घर पर ताला लगाकर मेहनत मजदूरी करने चले जाते है उनको कोई चिंता नही रहती क्योंकि भोजन की व्यवस्था तो स्कूल मे ही मिडडेमील के रूप मे हो ही जाती है पर आज वो फिक्र भी नही कर सके। कुछ दूरस्थ स्कूलों मे पोषाहार और दूध तैयार हो गया होगा यकीनन …. ? या दूध खरीद लिया गया होगा ? इसकी जवाबदेही कोन लेगा …? जब शिविरा कलैंडर तैयार हुआ उस समय कमी क्यों रखी गई ? क्या कोई जवाबदेही नही बनती या सचमूच किसी वर्ग विशेष का हित ही सर्वोपरि है भाड़ मे जाये बच्चों और अभिभावकों की परेशानी। ऐसा कैसे सोच लिया आपने ? अगर कोई अतिविशिष्ट कारण हो तो आदेश की उपयोगिता समझ मे आती है । अगर वास्तव मे ही अतिविशिष्ट कारण थे तो स्पष्ट क्यों नही करते ? या बड़े -बड़े आफिसों के बड़े साहबो को खुश करने के लिऐ तो नही किया गया। लोककल्याण राज्य मे अधिकतम लोगो को अधिकतम सुविधा मिले क्या ये सिद्धांत यहां लागू हुआ ?
साहब हम तो आपका हर आदेश मानते है या यों कह लीजिए आदेशों की पालना करना हमारी संवैधानिक और नैतिक जिम्मेदारी है और मजबूरी भी ? माफ करना मजबूरी शब्द दिल से लिखा है दीमाग को साइड मे रखकर। क्योंकि बहुत सारे आदेश की पालना मे पालना होती है तर्क मान्य नही होते तो हम राजकीय कर्मचारी होने का फर्ज बहुत बारीकी से निभाते है। मै पुनः आपको व आपके सभी बड़े-बड़े आफिसर्स को बधाई देता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि हमारे ग्यापन और मांग पत्र भी इन कमरो मे कहीं पड़े होगें तीन दिन का अवकाश है समय मिले तो उन पर भी गौर करना । कर्मचारी तो हम भी है और यूनियन भी है , ग्यापन भी देते है पर अफसोस वो फाइलें शायद वजन के अभाव मे कहीं उड़ गई लगती है ? पर इस लोककल्याणकारी सरकार से उम्मीद तो कर ही सकते है।
धन्यवाद ।(संदर्भ-अखबार की खबर)
मांग पत्र और ग्यापन के ढेरी से एक कर्मचारी की आवाज़।
राकेश कुमार ^राकेश^
भादरा -हनुमानगढ़ (राज.)